Educational Poem

ये कैसा मंजर छाया है ये कैसा मंजर छाया है,
कौन वो जालिम है जिसने बादल को आज रुलाया है,,
आलम है बेदर्दी का चारों तरफ तबाही है,,
मानव खुद जालिम है जिसने मानव आज भुलाया है....
ये कैसा मंजर छाया है....

अपने अपनों से बिछड़ गए,हो गए घर बर्बाद हैं,
जीने को मजबूर है लेकिन दिलों में बुझ गई आग है,,
आंसू भी है इस पानी में अरमां भी है इस पानी में,,, 
विलाप रही है मां बहनें,घर-घर में सुना राग है....
ये कैसा मंजर छाया है....

कभी शहर समंदर हो जाता,हो जाती बिल्डिंग राख है,
थोथा कर जाती पेड़ों को कैसी जड़ और शाख है,,
हे धरती तेरी हिम्मत है जो अब तक जिंदा बैठी है,,,
खुदगर्जी है ये मानव इनकी,संख्या लाखों लाख है....
ये कैसा मंजर छाया है....

विकसित होने की होड़ लगी है,पर मानव अनजान है, 
जंगल खेत,इमारत हो गए,धरती अब बियाबान है,,
ये कर्म जो तूने कर डाला,अब रो ले मानव बैक कर,,,
भ्रम तेरा अबे टूट गया,कि तू सबसे बलवान है....
ये कैसा मंजर छाया है....

भूल गया ये मानव खुद को,कितना ये नादान है,
बंगला गाड़ी और रुपया,बस इतनी पहचान है,,
खुद ही खुद का दुश्मन है,ना खुद ही खुद के साथ है,,, 
मनमोहन या मोदी हो,फिर सब के सब इंसान है....
ये कैसा मंजर छाया है....

जाग खड़ा हो हे मानव,तू अब भी शायद मौका है,
चेन्नई के बादल ने रोक कर,तुझको शायद रोका है,,
क्या शर्त है तेरी कुदरत से,क्या तेरी औकात है,,,
जीत जाएगा मानव इक दिन,शायद तेरा धोखा है....

ये कैसा मंजर छाया है,ये कैसा मंजर छाया है,,
मानव खुद जालिम है जिसने,मानव आज भुलाया है......

# Educational Poem

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